Friday, September 5, 2014

माँ....एक शिक्षक


घुटनों पर चलती थी,
जाने कब पैरों खड़ना सीख गई..
माँ तेरे प्यार, दुलार और ममता की छाँव में,
पता ही नहीं चला कब बड़ी हो गई..

समय बदलता रहा..
पर तू न बदली, तेरा प्यार न बदला,
चिंता करना और दुलार न बदला....

तूने ही तो हर मोड़ पर जीना सिखाया,
सही चीज़ के लिए लड़ना सिखाया,
और..
जीवन के तोर तरीके सिखाये..

तूने जब इतना कुछ सिखाया,
तो और कोई क्यों..??
तू ही तो हैं सही मायने में
मेरी पहली शिक्षक....


-काव्या शर्मा

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